माधवी उस शुभ दिन देखने की लालसा अपने मन में पाल रही थी की वो दिन कब आयेगा जब वो उसके दर्शन कर पायेगी? कब उसकी अमृत वाणी उसके कानों को तृप्त कर देगी? और इस दिन को जल्द से जल्द देखने के लये माधवीने मान्यता भी कैसी कैसी मान ली थी? उस दिन का ध्यान करते ही उसका ह्रदय और चेहरा खिल उठता था शायद वो दिन आज ही आ गया था माधवी आज भोर से ही अत्यंत प्रसन्न थी उसने बड़े उत्साह के साथ फूलों का हार गुथा था, और उसके लिये उसने अंसख्य कांटो को अपने हाथों में भी चुभा लिया था पर..