मेरा यह व्यंग्य आज की राजनीतिक स्थितियों पर एक जबरदस्त तंज़ है. देश की सभी राजनीतिक पार्टियां कुछ सामजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक मुद्दों को इसलिए हल नहीं करती/करवाती ताकि उनका इस्तेमाल महज़ चुनाव जीतने के लिए भरपूर ढंग से किया जा सके. ऐसे मुद्दों को जिन्न की तरह चुनावों के समय बंद बोतलों से निकाला जाता है और चुनाव ख़त्म होने के बाद उनको फिर से उन्हीं बोतलों में बंद करके रख दिया जाता है, अगले किसी चुनाव के होने तक. यह एक मजेदार पर ज़रूरी व्यंग्य है.