बाबू दयाशंकर की एक अजीब आदत थी, उन्हें अपनी प्रेमिकाओं को मनाना बहुत पसंद था, और तभी वे अपने असली रंग में आते थे पर पत्नी गिरिजा एक दम शांत और गंभीर थी, फिर भी अपने पति की आदत को वो भांप गई थी