यह एक बेहतरीन व्यंग्य है, जिसमें मैंने उनलोगों पर तंज़ कसने का प्रयास किया है, जो अपनी जुबान पर कोई नियंत्रण नहीं रखते. ख़ास करके राजनेता लोग, जिनकी जुबान तो चुनावों के समय कुछ ज्यादा ही फिसलती रहती है.