मीरा भक्तिन

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प्रस्तुत कहानी मीरा भक्तिन हमारे समाज की उस संस्कृति से अवगत कराती है, जहां आज भी सोलहवीं शताब्दी की धारणाएँ प्रचलित है । समय के प्रवाह के साथ युग बदल चुका है, किंतु यहाँँ पर पुरुष सत्तात्मक समाज का दृष्टिकोण आज भी नहीं बदला है । वह स्त्रियों को दोयम दर्जे पर रखता है । पुरुषों की इस रूढ़ मानसिकता का शिक्षित सुसंस्कारित स्त्रियों पर पड़ता प्रतिकूल और नकारात्मक प्रभाव ज्यादा खींचने पर टूटने वाली उक्ति को चरितार्थ कर रहा है । इस नये परिवेश में मानव धर्म अपने प्राकृत अर्थ को खोज रहा है नए मूल मार्गदर्शन कर रहे हैं और उद्घोष कर रहे हैं कि समाज की मूल इकाई परिवार की सुख संपन्नता तभी अक्षुण्ण रह सकती है, जब समय की मांग के अनुसार पुरुष अपनी मानसिकता में परिवर्तन करके स्त्री के महत्व को हृदयंगम करें ।