रसप्रिया - (फणीश्वरनाथ रेणु) धूल में पड़े कीमती पत्थर को देख कर जौहरी की आँखों में एक नई झलक झिलमिला गई - अपरूप-रूप! चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया की मुँह से निकल पड़ा - अपरुप-रुप! ...खेतों, मैदानों, बाग-बगीचों और गाय-बैलों के बीच चरवाहा मोहना की सुंदरता! मिरदंगिया की क्षीण-ज्योति आँखें सजल हो गईं। मोहना ने मुस्करा कर पूछा, तुम्हारी उँगली तो रसपिरिया बजाते टेढ़ी हो गई है, है न ऐ! - बूढ़े मिरदंगिया ने चौंकते हुए कहा, रसपिरिया ...हाँ ...नहीं। तुमने कैसे ...तुमने कहाँ सुना बे...