गुलाबो

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इस महानगरीय जीवन ने हम में बची थोड़ी-बहुत संवेदना को भी सोख लिया। जीवन की रफ्तार को इतना तेज़ और समयबद्ध कर दिया है कि हम ज़रा ठहर कर किसी और के आँसूँ भी पोंछ नहीं सकते।