कभी हमारी सोच उस सिक्के की तरह होती है। जिसके पीछे की छवि हम तब तक नही देख पाते जब तलक हम उसे पलटकर नहीं देखते। ये कहानी है विजयगिरी जी की जो एक मातृ भक्त है। वतन में ही जीना मरना चाहते है। और उनका बेटा अनिकेत उन्हें अपने साथ अहमदाबाद ले जाना चाहता है।