नवजीवन

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यह कहानी दर्शाती है कि महत्त्वाकांक्षा किस प्रकार प्रेम को निगल जाना चाहती है. उसके लिए पैसा कोई नई चीज न था उसने अपने घर में खूब देखा और खर्च किया था उसका आकर्षण तो प्रशासनिक पद में निहित था जिसका सपना उसने संजोया था. वह कलेक्टर की बीवी होना चाहती थी किसी बाबू की नही और इसे वह किसी न किसी बहाने जताने से नही चूकती थी. रोजमर्रा के तानो से दोनों के रिश्ते बिगड़ते जा रहे थे. दूसरे लोगो की तरह ही अब रूपा ने भी उन्हें ठाकुर साहब कहना शुरू कर दिया था... उनके बीच का माही शायद मर चुका था.