ऋषि उद्दालक एवं श्वेतकेतु की यह कथा एक पिता व पुत्र के बीच हुए संवादों के माध्यम से ब्रह्म के गूढ़ ज्ञान को बहुत आसान व तीर्किक तरीके से प्रस्तुत करती है। एक पिता किस प्रकार अपनी संतान के विकास में सहायक हो सकता है उसका उत्कृष्ट उदाहरण है।