कपूर साहब की फैमिली

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दुनिया के लिए विज्ञान और नवीन प्रविधियॉ चाहे कितनी भी जरुरी हो, विकास-दर और औद्योगिक विकास कितना भी अहम स्थान रखता हो, इनकी न कोई विचारधारा होती है और न ही मानवीय संवेदना। यह दुनिया प्यार के भूखे लोगों से भरी है। एक-दूसरे से कतरा कर निकल जाने वाले अजनबी भी दरअसल जरा बेरुखी की धूल हटाने पर आत्मीय बन सकते हैं। मानता हॅू कि वृहद् सामाजिक-आर्थिक प्रक्रियाओं के आगे इंसान बौना है। लेकिन इंसानों के मध्यं जो संबंध हैं वे कतई मामूली नहीं हैं। परिवर्तन में कड़वाहट भी आती है पर फिर भी बदले माहौल से जुड़कर इंसान जीवन की सार्थकता की तलाश छोड़ता नहीं है। जिससे हमारा संबंध बन जाता है चाहे वह घर की दीवालें हो या ऑगन में खड़ा मूक पेड़ या फिर कोई मनुष्‍य, सारी जिन्दगी न हमें उसे सिर्फ देखते हैं बल्कि हर पल महसूस भी करते हैं। तभी तो पल भर में कई जमाने गुजर जाते हैं लेकिन सारे जन्म एक पल नहीं गुजरता है। अनगिनत छद्म और छलावों के बीच कभी तो हम अपने सच्चे रुप में सामने आते हैं। कुदरत ने हमें सब कुछ दिया है फिर भी हम जिन चीजों के लिए भागते हैं उनमें से ज्यादातर के बगैर हमारा काम आसानी से चल सकता है। अनजान लोग भी प्‍यार भरे बर्ताव से कितनी जल्‍दी अपने बन जाते हैं।