व्यवस्था से दुखी शहरी मध्यमवर्गीय परिवार के ऐसे दंपत्ती की कथा जो मानसिक अशांति का हल उपवास में तलाशता है पर उसे धर्म के ठेकेदारों के रवैये से निराशा ही हाथ लगती है ।