रवि के लिए इतना सुनना ही उसकी पीड़ा और बेबसी को तो, समझने के लिए काफी था, अगर नाकाफी कुछ था तो यह की, रवि, समझ नहीं पा रहा था की, क्या ये वही सरिता है जो पहले मेरे मजाक में ही, लड़के होने की इच्छा रखने मात्र से नाराज हो जाया करती थी, और मुझे , लिंग आधारित फर्क से बचने की एक के बाद एक, कई नसीहते, दे दिया करती थी और आज खुद, उसी दादी माँ का प्रेम और क्षमा पाने के लिए, खुद, यह जिद पकडे बैठी है, और वो भी उसी दादी माँ के लिए, जिसने, शादी से लेकर आज तक, कभी भी, इससे, सीधे मुहँ बात तक नहीं की