अंतरा

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‘अंतरा‘ मेरी पुस्तक का ये शीर्षक भी मेरी आत्मा की ही पुकार है। जीवन संगीत के मध्य का अंतरा अलग-अलग रुप,रंग में हमारे समक्ष आता रहता है। नारी के अंतर्मन में भी न जाने ऐसे कई सवाल उठते हैं जो उसके जीवन सफर को प्रश्न चिह्न बना कर रख देते हैं। मेरी कहानियाॅं भी कुछ उसी प्रकार जीवन सफर के कई पड़ाव के रुप में प्रस्तुत है। जिस प्रकार कई अंतरे गीत में होते हैं उसी प्रकार जीवन में सुख-दुःख रुपी अंतरे हिलोरें लेती हैं। जीवन में आरोह-अवरोह का क्रम चलता ही रहता है, मेरी कहानियाॅं भी यही व्यक्त करने का प्रयास करती हैं। सागर उर्मि की भाॅंति ही मन में तरंगें उठती गिरती हैं। आईए! ‘अंतरा‘ रुपी नारी के मन के उन पन्नों को पलट कर समझने का प्रयास करतें हैं।