जो भोला कभी मंदिर की सीढ़ियां भी नही छू सका आज उसी की भस्म से उसके आराध्य का श्रंगार हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे स्वयं शिव आज उस पगले भगत का आलिंगन करने हेतु बाहें फैलाए खड़े हों।