खून के घूट

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नीद में ,ख्वाब में जो समाया रहा बरसो एक अजनबी, दिल- दिमाग छाया रहा बरसो लोग घर को सजाने नही क्या-क्या करते वो मुस्कान लिए घर को सजाया रहा बरसो खामुशी का सबब था यकीनन यही इतना एक मर्ज समझ उसको , छुपाया रहा बरसों