दोहरा दर्द भाग -2 का कुछ अंश मेरे और पिताजी के बीच बहुत सारी बातें हुईं मैं उन्हें भविष्य में आने वाली कठिनाइयों से अवगत कराता और वे भाग्य और भगवान की बातें करते । मैं कहता समय पर जाग जाने वाले अपना भाग्य खुद लिख सकते हैं । भाग्य के भरोसे तो बुजदिल बैठा करते हैं । यह मेरी जिंदगी है इसे मैं भाग्य के भरोसे नही छोड़ सकता । लेकिन ये क्या ………..….. Continue…………….(आगे पढ़ें) जो पिताजी कभी मेरी हर बात को मानते और समझते थे आज मेरी कोई बात मानने को तैयार नही थे । पिताजी कहने लगे कि पहले तो तुमने लड़की पसन्द कर ली अब मना कर रहे हो । यह ठीक बात नही है ऐसे किसी की इज्जत से खिलवाड़ नही करना चाहिए । मैंने उन्हें समझाया कि ऐसी कोई बात नही है कि मैंने उसे पसंद किया । मैं तो उसे ठीक से जनता भी नही हूँ । बस इतना है कि जिस स्कूल में मैं पढ़ाता हूँ वहीं वह भी पढ़ाती है ।