मानवता के झरोखे

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मानवता के झरोखे, नामक कहानी संग्रह का यह तृतीय भाग है । विखंडित होते हुए मानवीय एवं पारिवारिक मूल्य , भारतीय संस्कृति को पीछे छोड़ते हुए बच्चों एवं वृद्धों के प्रति कर्तव्य विमुख होता हुआ वर्तमान युवा समाज एवं जीवन में तथ्य से दूर प्रदर्शन के प्रति बढ़ता मोह आदि को प्रस्तुत कहानी का आधार बनाया गया है । कलात्मक एवं रोचक ढंग से आधुनिकता के पीछे दौड़ती हुई माता के द्वारा बच्चे की उपेक्षा तथा वृद्धजन की पीड़ा को मार्मिक ढंग से उकेरा गया है।