ताहिरा खुद ही कौर बना बना क्र फूफी को खिलाने लगी लहसुन की चटनी, ज्वार की गर्म रोटियां और ताहिरा का प्यार.... फूफी में जान सी आ गई वे ताहिरा को निहारने लगी गोरा सुतवाँ चेहरा, बड़ी बड़ी पलके, सुंदर भरे भरे से गुलाबी होंठ...नाज़ुक सी गर्दन ‘या अल्लाह! इतना नूर, इतना शबाब इस झोपडी में क्यों सकेला तूने? इस शबाब को छुपाने लायक हमारे दुपट्टे का हौसला कहाँ? एका एक फूफी के दिमाग में बिजली तडप उठी...खिरचा किया, फिर आठ दस कुल्ले किये और भाभी के सिरहाने से पानदान उठाकर पान लगाने लगी भाईजान खा पि क्र तख्त पर सो रहे थे और उनके पायते भाभी सिकुड़ी हुई लेती थीं