लेकिन फूफी का मन कचोटने लगा. सच ही तो है, ताहिरा के खेलने खाने के दिन है. अभी से बाल बच्चे की झंझट? लेकिन वह तो इसी शर्त पर ब्याही गई थी की जल्द से जल्द कोठी में चिराग रोशन करेगी. खुदा क्या कभी माफ़ करेगा उन्हें. लोग अनजाने में गुनाह कर बैठते हैं, वह तो जानबूझकर ताहिरा को गुनाह के रस्ते ले गई. ताहिरा के जिस प्रेम के पल्लवित होने में खुद उन्होंने रोड़ा अटकाया था, उसी प्रेम की भीख वे शाहजी का घर भरने चली. क्यों? क्या भाईजान से बेपनाह मोहब्बत की वजह से या ताहिरा को शहनाज़ बेगम और मंझली बेगम के सामने मात न खानी पड़े?....