पराभव मधुदीप भाग - चार रविवार का अवकाश था तो भी मास्टर जसवन्त सिंह जी और श्रद्धा बाबू विद्यालय के कार्यालय में बैठे हुए बातें कर रहे थे | स्टाफ का कोई अन्य अध्यापक या अध्यापिका वहाँ उपस्थित न थी | विद्यालय की बातों से हटकर बातों का प्रवाह व्यक्तिगत जीवन पर आ गया था | "श्रद्धा बेटे, मनोरमा के विवाह के उपरान्त एक बड़ा बोझ मेरे सिर से उतर गया है | जीवन में यही एक इच्छा थी कि बेटी को उपयुक्त वर के हाथों में सौंपकर उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाऊँ | भगवान ने मेरी सुन ली जो