चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 38

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चन्द्रगुप्त ने कहा की सिंहरण इस प्रतीक्षा में है की कोई ब्लाधिकृत जाय तो वे अपना अधिकार सोंप दें नायक! तुम खड्ग पकड़ सकते हो, और उसे हाथ में लिए सत्य से विचलित तो नहीं हो सकते? बोलो चन्द्रगुप्त के नाम से प्राण दे सकते हो? मैंने प्राण देनेवाले वीरों को देखा है चन्द्रगुप्त युद्द करना जानता है और विश्वास रखो, उसके नाम का जयघोष विजयलक्ष्मी का मंगल गान है आज से मैं ही ब्लाधिकृत हूँ, मैं आज सम्राट नहीं, सैनिक हूँ चिन्ता क्या? सिंहरण और गुरुदेव न साथ दें, डर क्या? सैनिको! सुन लो, आज से मैं केवल सेनापति हूँ, और कुछ नहीं जाओ, यह लो मुद्रा और सिंहरण को छुट्टी दो....